शुक्रवार, 1 मई 2009

शब्द-यात्रा: मुर्गा -अजित वडनेरकर

अक्षर से शब्द, शब्द से भाषा, भाषा से भाव तथा भाव की अभिव्यक्ति...सबके हित की कामना से करना ही साहित्य-सृजन का हेतु है। कोई शब्द अचानक अस्तित्व में नहीं आता, उसके जन्म और प्रचलन के पूर्व की दीर्घ यात्रा का अन्वेषण कर श्री अजित वडनेरकर प्रस्तुत कर रहे हैं दिव्य नर्मदा के पाठकों के लिए। आज जानिए 'मुर्गा' की कथा।

अ दना और निरीह सा जीव मुर्गा इनसान के लिए बेहद खास है। मांसाहारी भोजन के शौकीन लोगों की थाली को तो इसने समृद्ध किया ही है, भाषा को भी इसने मालामाल किया है। हिन्दी उर्दू में इसे लेकर कई कहावतें-मुहावरे प्रचलित है जैसे घर की मुर्गी दाल बराबर यानी उपलब्ध पदार्थ या व्यक्ति को महत्व न दिया जाना। मुर्गे की बांग मुहावरा भी इसका महत्व बताता है। यह पक्षी भोर से पहले ही जाग जाता है और शोर मचाता है जिसे बांग देना कहा जाता है। इसे सुनकर ही पुराने ज़माने में लोगों की नींद खुलती थी। मुर्गे पर इसी निर्भरता ने एक अन्य कहावत को जन्म दिया-मुर्गा बांग न देगा तो क्या सुबह न होगी? इसके मूल में किसी कार्य विशेष के लिए परनिर्भरता को लेकर उलाहना छुपा है। …कश्मीर वादी के गुलमर्ग,सोनमर्ग जैसे स्थान अपने नर्म घास के मैदानों के लिए जान जाते हैं… मुर्गा या मुर्गी शब्द हिन्दी, उर्दू फारसी में प्रचलित हैं। अरबी में भी इसका प्रयोग होता है मगर मुर्ग के रूप में। मूलतः यह शब्द फारसी का है जिसका सही रूप भी मुर्ग ही है। इंडों-ईरानी भाषा परिवार के इस शब्द का संस्कृत रूप है मृगः जो बना है मृग् धातु से जिसमें खोजना, ढूंढना, तलाशना जैसे भाव निहित हैं। आमतौर पर हिन्दी में मृग से तात्पर्य हिरण प्रजाति के पशुओं जैसे सांभर, चीतल से है मगर इस शब्द की अर्थवत्ता बहुत व्यापक है। इसके कई अर्थ हैं जो विभिन्न भावार्थों के साथ इस शब्द के सामूहिक इतिहास का संकेत देते हैं। इसमें न सिर्फ चौपाए बल्कि पक्षी भी शामिल हैं। वैदिक काल में संस्कृत में मृग का अर्थ हिरण तक सीमित न होकर किसी भी पशु के लिए था। मनुष्येतर सामान्य सभी प्राणी इसके अंतर्गत आ जाते थे। इस तरह शाकाहारी से लेकर मांसाहारी तक सभी थल चर पशुओं का इसमें समावेश था। शिकार के लिए संस्कृत में मृगया शब्द है जो इस बात को स्पष्ट करता है कि मृग की अर्थवत्ता में हर तरह के पशु शामिल थे। जाहिर सी बात है कि शिकार या आखेट के दायरे में सिर्फ हिरण ही नहीं थे। प्राचीनकाल से ही शेर चीतों के आखेट में मनुष्य की सहज रुचि रही है। शिकार शब्द में खोज का भाव ही निहित है। चिरंतन प्यास के लिए मृगतृष्णा और दृष्यभ्रम के लिए मृगमरीचिका शब्द इसी सिलसिले की कड़ी हैं जिनमें तलाश, खोज स्पष्ट है। मृग शब्द का अर्थ हरी घास भी है। पूर्ववैदिककाल में इस शब्द में ऐसे स्थान या घाटी का भाव था जो हरी भरी हो। पहाड़ों पर आमतौर पर हरियाली जहां होती है उसे ही वादी की संज्ञा दी जाती है, शेष ऊंचाइयां उजाड़ और अनुर्वर होती हैं। लगता है प्राचीनकाल में मृग शब्द में चरागाह या चरने का भाव प्रमुख था। संस्कृत शब्द मृगणा का अर्थ होता है अनुसंधान, शोध, तलाश। जिस तरह से चर् धातु में चलने, गति करने का भाव प्रमुख है उसी के चलते इससे चारा (जिसका भक्षण किया जाए), चरना (चलते चलते खाने की क्रिया), चरागाह (जहां चारा हो) जैसे विभिन्न शब्द बने है। कुछ यही प्रक्रिया मृग के साथ भी रही। पथ, राह, रास्ता के अर्थ में संस्कृत का मार्ग शब्द है जो इसका ही रूपांतर है। मार्ग में भी खोज और अनुसंधान का भाव स्पष्ट है। कभी जिस राह पर चल कर मृगणा अर्थात अनुसंधान या तलाश की जाती थी, उसे ही मार्ग कहा गया। चर् के उदाहरण से स्पष्ट है कि मृग नामक घास के विशाल चारागाहों में पशुओं द्वारा इसके भक्षण करते चलने से यह शब्द बना जो बाद में व्यापक तौर पर मार्ग यानी रास्ता के अर्थ में प्रचलित हुआ। कश्मीर घाटी में कई बस्तियां हैं जिनके नाम के साथ मर्ग शब्द जुड़ता है जो इसी श्रंखला का हिस्सा है जिसका मतलब होता है हरी भरी वादी मसलन सोनमर्ग, गुलमर्ग, तंगमर्ग आदि। वादी के ये तमाम स्थान अपने नर्म घास के मैदानों के लिए ही जाने जाते हैं। इसी श्रंखला में पक्षी को भी फारसी में मुर्ग़ का नाम मिला जिसका मतलब हुआ चुगने वाला जीव। थलचर पक्षियों में मुर्ग़ सर्वाधिक लोकप्रिय आहार है। अरबी में इससे एक सामिष पकवान बनता है जिसे मुर्ग़मुसल्लम कहते हैं यानी साबुत भुना हुआ मुर्गा। इसी तरह एक और पक्षी होता है जिसे मुर्गाबी कहा जाता है। मुर्गाबी बतख की प्रजाति की जीव है और जल-थल दोनो जगहों पर रहती है। यह बना है मुर्गआब यानी पानी में रहनेवाला मुर्ग जिसका देशी रूप हुआ मुर्गाबी। उर्दू-फारसी में पानी को आब कहते हैं। यूं आब शब्द भी संस्कृत मूल का है और अप् धातु से बना है जिसका अर्थ पानी होता है। फारसी में मुर्ग़ से बने कई शब्द युग्म है जिनमें मुर्ग शब्द का अभिप्राय चिडिया या परिंदे के तौर पर ही उभरता है जैसे मुर्गबाग़ यानी पक्षी विहार या मुर्गीखाना यानी पंछीघर, मुर्गसुलेमान यानी राजा सॉलोमन की चिडिया आदि। प्रचलित अर्थ में जो मुर्गी है उसके लिए मुर्ग-सुब्हख्वान यानी सुबह का पंछी जैसा आलीशान शब्द है।

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1 टिप्पणी:

  1. मुर्गे की बांग तो खूब सुनी पर मुर्गे की कहानी से आज परिचय हुआ. अजित जी को धन्यवाद उनके माध्यम से कई अनजानी बातें ज्ञात हुईं...आभार हूँ.

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