भारतीय उपमहाद्वीप में हज़ार, लाख, करोड़ शब्दों का आम इस्तेमाल होता है। पाकिस्तान में भी और बांग्लादेश में भी।
हिन्दी-उर्दू के करोड़ शब्द की उत्पत्ति संस्कृत के कोटि crore से हुई है। जबकि लाख की व्युत्पत्ति लक्ष से और फ़ारसी का हज़ार शब्द आ रहा है इंड़ो-ईरानी परिवार के हस्र से।
संस्कृत का कोटि शब्द कुट् धातु से बना है। धातुएं अक्सर विभिन्नार्थक होती हैं। कुट् का एक अर्थ होता है वक्र या टेढ़ा। दिलचस्प बात यह है यही वक्रता या टेढ़ापन ही उच्च, सर्वोच्च, निम्नता या पतन का कारण भी है। पृथ्वी की सतह पर आई वक्रता ने ही पहाड़ों के उच्च शिखरों को जन्म दिया इसीलिए इससे बना कोट शब्द पहाड़ या किले के अर्थ में प्रचलित है। किसी टहनी को जब मोड़ा जाता है तो अपने आप उसके घुमाव वाले स्थान पर उभार आना शुरु हो जाता है। इस कोण में तीक्ष्णता, पैनापन और उच्चता समाहित रहती है। इसी धातु से बने कोटि शब्द में यह भाव और स्पष्ट है। कोटि यानी उच्चता, चरम सीमा। धनुष को मुड़े हुए हिस्से को भी कोटि ही कहा जाता है। कोटि में उच्चतम बिन्दु, परम और पराकाष्ठा का भाव है। इसी रूप में एक करोड़ को भी सामान्य तौर पर संख्यावाची प्रयोग में पराकाष्ठा कहा जा सकता है।
कोटि का दूसरा अर्थ होता है कोण या भुजा। एक अन्य अर्थ है वर्ग, श्रेणी जिसे उच्च कोटि, निम्नकोटि में समझा जा सकता है। यह कोटि ही कोण है। उच्च कोण निम्न कोण।
करोड़ शब्द का इस्तेमाल अब ठाठ से अंग्रेजी में भी होता है। भारत में पुत्र के सौभाग्य की कामना से पुराने ज़माने में करोड़ीमल जैसा नाम भी रखा जाता रहा है। बेचारा करोड़ीमल देहात में नासमझी के कारण रोड़मल और बाद में रोड़ा, रोडे या रोड्या बनकर रह गया।
एक सहस्र के लिए हज़ार hazar शब्द उर्दू-फारसी का माना जाता है। मज़े की बात यह कि उर्दू ही नही ज्ञानमंडल जैसे प्रतिष्ठित हिन्दी के शब्दकोश में भी यह इन्हीं भाषाओं के नाम पर दर्ज है। हजार इंडो-ईरानी भाषा परिवार का शब्द है। इसका संस्कृत रूप हस्र है। अवेस्ता में भी इसका यही रूप है जिसने फारसी के हज़र/हज़ार का रूप लिया और लौट कर फिर हिन्दी में आ गया। सहस्र यानी स+हस्र में हज़ार का ही भाव है। हस्र बना है हस् धातु से। करोड़ के कुट् की तरह से इसमें भी चमक का भाव है। हास्य, हंसी जैसे शब्द इसी धातु से जन्मे हैं। हँसी से चेहरे पर चमक आती है क्योंकि यह प्रसन्नता का प्रतीक है। प्रसन्नता, खुशहाली, आनंद ये चमकीले तत्व हैं। धन से हमारी आवश्यकताएं पूरी होती हैं। आवश्यकताएं अनंत हैं तो भी इनकी आंशिक पूर्णता, आंशिक संतोष तो देती ही है। सो एक सहस्र की राशि में धन से मिले अल्प संतोष की एक हजार चमक छुपी हैं। अपने प्रसिद्ध उपन्यास अनामदास का पोथा में हजारी प्रसाद द्विवेदी अपने नाम की व्याख्या करते हुए लिखते हैं कि हज़ार वस्तुतः सहस्त्र में विद्यमान हस्र का ही फ़ारसी उच्चारण है....यूं शक्ति का एक रूप भी हजारी है।
सहज शब्द ह (हठयोग) और ज (जययोग) का गुणपरक समन्वित रूप है और हजारी क्रियापरक समन्वय है। “ हजमाराति या देवी महामायास्वरूपिणी, सा हजारीति सम्प्रोक्ता राधेति त्रिपुरेति वा ” सामान्य बोलचाल में हज़ार शब्द में कई, अनेक का भाव भी शामिल हो गया। जैसे बागवानी का एक उपकरण हजारा hazara कहलाता है जिसके चौड़े मुंह पर बहुत सारे छिद्र होते हैं जिससे पौधों पर पानी का छिड़काव किया जाता है। यही हजारा हिन्दी में रसोई का झारा बन जाता है जिससे बूंदी उतारी जाती है। शिवालिक और पीरपंजाल पर्वतीय क्षेत्र की एक जनजाति का नाम भी हजारा है। यह क्षेत्र अब पाकिस्तान में आता है। एक प्रसिद्ध फूल का नाम भी हजारी है। इसे गेंदा भी कहा जाता है। इसमें बेशुमार पंखुड़ियां होती हैं जिसकी वजह से इसे यह नाम मिला। हजारीलाल और हजारासिंह जैसे नाम इसी मूल से निकले हैं।
हिन्दी में एक और संख्यावाची शब्द का इस्तेमाल खूब होता है वह है लाख। यह बना है संस्कृत के लक्षम् से बना है। इसमें सौ हज़ार की संख्या का भाव है। लक्षम् बना है लक्ष् धातु से जिसमें देखना, परखना जैसे अर्थ हैं। इस लक्ष् में आंख की मूल धातु अक्ष् ही समायी हुई है। इसमें चिह्नित करना, प्रकट करना, दिखाना लक्षित करना जैसे भाव भी निहित हैं। बाद में इसमें विचार करना, मंतव्य रखना, निर्धारित करना जैसे भाव भी जुड़ते चले गए। टारगेट के लिए भी लक्ष्य शब्द बना जो एक चिह्न ही होता है। धन की देवी लक्ष्मी का नाम भी इसी धातु से उपजा है जिसमें समृद्धि का भाव है।
किन्हीं संकेतों, चिह्नों के लिए लक्षण शब्द का प्रयोग भी होता है। लक्षण में पहचान के संकेतों का भाव ही है चाहे स्वभावगत हों या भौतिक। मालवी राजस्थानी में इससे लक्खण (बुन्देली में लच्छन- सलिल) जैसा देशज शब्द भी बनता है। देखने के अर्थ में भी लख शब्द का प्रयोग होता है। लखपति शब्द से यूं तो अभिप्राय होता है बहुत धनवान, समृद्ध व्यक्ति। मगर इसका भावार्थ है भगवान विष्णु जो लक्ष्मीपति हैं। स्पष्ट है कि लखपति lakhpati में प्रभु विष्णु जैसी दयालुता, तेज और पौरुष का भाव समाहित है पर आज के लखपति-करोड़पति सिर्फ धनपति हैं। इन्हें किस कोटि में आप रखना चाहते हैं?
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