सोमवार, 7 जुलाई 2014

chhand salila: durmila chhand -sanjiv

Rose
छंद सलिला:
दुर्मिला छंद   
संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति लाक्षणिक, प्रति चरण मात्रा ३२ मात्रा, यति १०-८-१४, पदांत  गुरु गुरु, चौकल में लघु गुरु लघु (पयोधर या जगण) वर्जित।

लक्षण छंद
दिशा योग विद्या / पर यति हो, पद / आखिर हरदम दो गुरु हों
छंद दुर्मिला रच / कवि खुश हो, पर / जगण चौकलों में हों 
(संकेत: दिशा = १०, योग = ८, विद्या = १४)  
उदाहरण
. बहुत रहे हम, अब / न रहेंगे दू/र मिलाओ हाथ मिलो भी 
    बगिया में हो धू/ल - शूल कुछ फू/ल सरीखे साथ खिलो भी 
    कितनी भी आफत / आये पर भू/ल नहीं डट रहो हिलो भी 
    जिसको जो कहना / है कह ले, मुँह / मत खोलो अधर सिलो भी     

     
२. समय कह रहा है / चेतो अनुशा/सित होकर देश बचाओ         
    सुविधा-छूट-लूट / का पथ तज कद/म कड़े कुछ आज उठाओ  
    घपलों-घोटालों / ने किया कबा/ड़ा जन-विश्वास डिगाया   
    कमजोरी जीतो / न पड़ोसी आँ/ख दिखाये- धाक जमाओ    

३. आसमान पर भा/व आम जनता/  का जीवन कठिन हो रहा 
    त्राहिमाम सब ओ/र सँभल शासन, / जनता का धैर्य खो रहा      
    पूंजीपतियों! धन / लिप्सा तज भा/व् घटा जन को राहत दो       
    पेट भर सके मे/हनतकश भी, र/हे न भूखा, स्वप्न बो रहा  
  
                        ----------
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया,  तांडव, तोमर, त्रिभंगी, त्रिलोकी, दण्डकला, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दुर्मिला, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदन,मदनावतारी, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुद्ध ध्वनि, शुभगति, शोभन, समान, सरस, सवाई, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)
chhand salila: durmila chhand    -sanjiv
chhand, durmila chhand, acharya sanjiv verma 'salil',

मंगलवार, 1 जुलाई 2014

chhand salila: sawai/saman chhand -sanjiv

छंद सलिला:
सवाई /समान Roseछंद 

संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति लाक्षणिक, प्रति चरण मात्रा ३२ मात्रा, यति १६-१६, पदांत  गुरु लघु लघु ।

लक्षण छंद
हर चरण समान रख सवाई /  झूम झूमकर रहा मोह मन
गुरु लघु लघु ले पदांत, यति / सोलह सोलह रख, मस्त मगन  

उदाहरण
. राय प्रवीण सुनारी विदुषी / चंपकवर्णी तन-मन भावन
    वाक् कूक सी, केश मेघवत / नैना मानसरोवर पावन
    सुता शारदा की अनुपम वह / नृत्य-गान, शत छंद विशारद
    सदाचार की प्रतिमा नर्तन / करे लगे हर्षाया सावन   

     
२. केशवदास काव्य गुरु पूजित,/ नीति धर्म व्यवहार कलानिधि        
    रामलला-नटराज पुजारी / लोकपूज्य नृप-मान्य सभी विधि 
    भाषा-पिंगल शास्त्र निपुण वे / इंद्रजीत नृप के उद्धारक  
   दिल्लीपति के कपटजाल के / भंजक- त्वरित बुद्धि के साधक   

३. दिल्लीपति आदेश: 'प्रवीणा भेजो' नृप करते मन मंथन
    प्रेयसि भेजें तो दिल टूटे / अगर न भेजें_ रण, सुख भंजन     
    देश बचाने गये प्रवीणा /-केशव संग करो प्रभु रक्षण     
    'बारी कुत्ता काग मात्र ही / करें और का जूठा भक्षण 
    कहा प्रवीणा ने लज्जा से / शीश झुका खिसयाया था नृप 
    छिपा रहे मुख हँस दरबारी / दे उपहार पठाया वापिस  
                        ----------
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया,  तांडव, तोमर, त्रिभंगी, त्रिलोकी, दण्डकला, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदन,मदनावतारी, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुद्ध ध्वनि, शुभगति, शोभन, समान, सरस, सवाई, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)


सोमवार, 30 जून 2014

chhand salila: tribhngi chhand -sanjiv

छंद सलिला:
त्रिभंगी Roseछंद 

संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति लाक्षणिक, प्रति चरण मात्रा ३२ मात्रा, यति १०-८-८-६, पदांत  गुरु, चौकल में पयोधर (लघु गुरु लघु / जगण) निषेध।

लक्षण छंद
रच छंद त्रिभंगी / रस अनुषंगी / जन-मन संगी / कलम सदा
दस आठ आठ छह / यति गति मति सह / गुरु पदांत कह / सुकवि सदा

उदाहरण
. भारत माँ परायी / जग से न्यारी / सब संसारी नमन करें
    सुंदर फुलवारी / महके क्यारी / सत आगारी / चमन करें
    मत हों व्यापारी / नगद-उधारी / स्वार्थविहारी / तनिक डरें
    हों सद आचारी /  नीति पुजारी / भू सिंगारी / धर्म धरें  

     
२. मिल कदम बढ़ायें / नग़मे गायें / मंज़िल पायें / बिना थके     
    'मिल सकें हम गले / नील नभ तले / ऊग रवि ढ़ले / बिना रुके 
    नित नमन सत्य को / नाद नृत्य को / सुकृत कृत्य को / बिना चुके 
    शत दीप जलाएं / तिमिर हटायें / भोर उगायें / बिना झुके 

३. वैराग-राग जी / तुहिन-आग जी / भजन-फाग जी / अविचल हो 
    कर दे मन्वन्तर / दुःख छूमंतर / शुचि अभ्यंतर अविकल हो     
    बन दीप जलेंगे / स्वप्न पलेंगे / कर न मलेंगे / उन्मन हो    
    मिल स्वेद बहाने / लगन लगाने / अमिय बनाने / मंथन हो 
                        ----------
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया,  तांडव, तोमर, त्रिभंगी, त्रिलोकी, दण्डकला, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदन,मदनावतारी, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुद्ध ध्वनि, शुभगति, शोभन, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)
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chhand salila:  tribhngi chhand  -sanjiv

chhand salila: dandkala chhand - sanjiv


छंद सलिला:
दण्डकला Roseछंद 

संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति लाक्षणिक, प्रति चरण मात्रा ३२ मात्रा, यति १०-८-८-६, पदांत लघुगुरु, चौकल में पयोधर (लघु गुरु लघु / जगण) निषेध।

लक्षण छंद
यति दण्डकला दस / आठ  आठ छह  / लघु गुरु सदैव / पदांत हो 
जाति लाक्षणिक गिन / रखें  हर पंक्ति / बत्तिस मात्रा / सुखांत हो   

उदाहरण
. कल कल कल प्रवहित / नर्तित प्रमुदित / रेवा मैया / मन मोहे
    निर्मल जलधारा / भय-दुःख हारा / शीतल छैयां / सम सोहे
    कूदे पर्वत से / छप-छपाक् से / जलप्रपात रच / हँस नाचे 
    चुप मंथर गति बह / पीर-व्यथा दह / सत-शिव-सुंदर / नित बाँचे  

    
 
२. जय जय छत्रसाल / योद्धा-मराल / शत वंदन  नर / नाहर हे!     
    'बुन्देलखंडपति / 
यवननाथ अरि / अभिनन्दन असि / साधक हे 
    बल-वीर्य पराक्रम / विजय-वरण क्षम / दुश्मन नाशक / रण-जेता 
    थी जाती बाजी / लाकर बाजी / भव-सागर नौ/का खेता

३. संध्या मन मोहे / गाल गुलाबी / चाल शराबी / हिरणी सी 
    शशि देख झूमता / लपक चूमता / सिहर उठे वह / घरनी सी   
    कुण्डी खड़काये / ननद दुपहरी / सास निशा खों-/खों खांसे    
    देवर तारे ससु/र आसमां  बह/ला मन फेंके / छिप पांसे
                        ----------
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया,  तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दण्डकला, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदन,मदनावतारी, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुद्ध ध्वनि, शुभगति, शोभन, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)



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गुरुवार, 26 जून 2014


छंद सलिला: ​​​

​शुद्ध ध्वनि छंद

संजीव
*
छंद-लक्षण: जाति लाक्षणिक, प्रति चरण मात्रा ३२ मात्रा, यति १८-८-८-६, पदांत गुरु 

लक्षण छंद: 
लाक्षणिक छंद  है / शुद्धध्वनि पद / अंत करे गुरु / यश भी दे   
यति रहे अठारह / आठ आठ छह, / विरुद गाइए / साहस ले  
चौकल में जगण न / है वर्जित- करि/ए प्रयोग जब / मन चाहे  
कह-सुन वक्ता-श्रो/ता हर्षित, सम / शब्द-गंग-रस / अवगाहे 

उदाहरण: 
१. बज उठे नगाड़े / गज चिंघाड़े / अंबर फाड़े / भोर हुआ 
    खुर पटकें घोड़े / बरबस दौड़े / संयम छोड़े / शोर हुआ 
    गरजे सेनानी / बल अभिमानी / मातु भवानी / जय रेवा 
    ले धनुष-बाण सज / बड़ा देव भज / सैनिक बोले / जय देवा 
    
    कर तिलक भाल पर / चूड़ी खनकीं / अँखियाँ छलकीं / वचन लिया      
    'सिर अरि का लेना / अपना देना / लजे न माँ का / दूध पिया'
    ''सौं मातु नरमदा / काली मैया / यवन मुंड की / माल चढ़ा
    लोहू सें भर दौं / खप्पर तोरा / पिये जोगनी / शौर्य बढ़ा'' 

    सज सैन्य चल पडी / शोधकर घड़ी / भेरी-घंटे / शंख बजे
    दिल कँपे मुगल के / धड़-धड़ धड़के / टँगिया सम्मुख / प्राण तजे 
    गोटा जमाल था / घुला ताल में / पानी पी अति/सार हुआ 
    पेड़ों पर टँगे / धनुर्धारी मा/रें जीवन दु/श्वार हुआ  

    वीरनारायण अ/धार सिंह ने / मुगलों को दी / धूल चटा
    रानी के घातक / वारों से था / मुग़ल सैन्य का / मान घटा 
    रूमी, कैथा भो/ज, बखीला, पं/डित मान मुबा/रक खां लें    
    डाकित, अर्जुनबै/स, शम्स, जगदे/व, महारख सँग / अरि-जानें 
    
    पर्वत से पत्थर / लुढ़काये कित/ने हो घायल / कुचल मरे-
    था नत मस्तक लख / रण विक्रम, जय / स्वप्न टूटते / हुए लगे 
    बम बम भोले, जय / शिव शंकर, हर / हर नरमदा ल/गा नारा
    ले जान हथेली / पर गोंडों ने / मुगलों को बढ़/-चढ़ मारा   
    
    आसफ खां हक्का / बक्का, छक्का / छूटा याद हु/ई मक्का
    सैनिक चिल्लाते / हाय हाय अब / मरना है बिल/कुल पक्का   
    हो गयी साँझ निज / हार जान रण / छोड़ शिविर में / जान बचा
    छिप गया: तोपखा/ना बुलवा, हो / सुबह चले फिर / दाँव नया 

    रानी बोलीं "हम/ला कर सारी / रात शत्रु को / पीटेंगे 
    सरदार न माने / रात करें आ/राम, सुबह रण / जीतेंगे
    बस यहीं हो गयी / चूक बदनसिंह / ने शराब थी / पिलवाई 
    गद्दार भेदिया / देश द्रोह कर / रहा न किन्तु श/रम आई 
    
    सेनानी अलसा / जगे देर से / दुश्मन तोपों / ने घेरा 
    रानी ने बाजी / उलट देख सो/चा वन-पर्वत / हो डेरा 
    बारहा गाँव से / आगे बढ़कर / पार करें न/र्रइ नाला 
    नागा पर्वत पर / मुग़ल न लड़ पा/येंगे गोंड़ ब/नें ज्वाला

    सब भेद बताकर / आसफ खां को / बदनसिंह था / हर्षाया   
    दुर्भाग्य घटाएँ / काली बनकर / आसमान पर / था छाया 
    डोभी समीप तट / बंध तोड़ मुग/लों ने पानी / दिया बहा 
    विधि का विधान पा/नी बरसा, कर / सकें पार सं/भव न रहा

    हाथी-घोड़ों ने / निज सैनिक कुच/ले, घबरा रण / छोड़ दिया  
    मुगलों ने तोपों / से गोले बर/सा गोंडों को / घेर लिया 
    सैनिक घबराये / पर रानी सर/दारों सँग लड़/कर पीछे  
    कोशिश में थीं पल/टें बाजी, गिरि / पर चढ़ सकें, स/मर जीतें 

    रानी के शौर्य-पराक्रम ने दुश्मन का दिल दहलाया था 
    जा निकट बदन ने / रानी पर छिप / घातक तीर च/लाया था   
    तत्क्षण रानी ने / खींच तीर फें/का, जाना मु/श्किल बचना 
    नारायण रूमी / भोज बच्छ को / चौरा भेज, चु/ना मरना

    बोलीं अधार से / 'वार करो, लो / प्राण, न दुश्मन / छू पाये' 
    चाहें अधार लें / उन्हें बचा, तब / तक थे शत्रु नि/कट  आये 
    रानी ने भोंक कृ/पाण कहा: 'चौरा जाओ' फिर प्राण तजा    
    लड़ दूल्हा-बग्घ श/हीद हुए, सर/मन रानी को / देख गिरा 

    भौंचक आसफखाँ / शीश झुका, जय / पाकर भी थी / हार मिली 
    जनमाता दुर्गा/वती अमर, घर/-घर में पुजतीं / ज्यों देवी 
    पढ़ शौर्य कथा अब / भी जनगण, रा/नी को पूजा / करता है 
    जनहितकारी शा/सन खातिर नित / याद उन्हें ही / करता है 

    बारहा गाँव में / रानी सरमन /बग्घ दूल्ह के / कूर बना 
    ले कंकर एक र/खे हर जन, चुप / वीर जनों को / शीश नवा
    हैं गाँव-गाँव में / रानी की प्रति/माएँ, हैं ता/लाब बने 
    शालाओं को भी , नाम मिला, उन/का- देखें ब/च्चे सपने

   नव भारत की नि/र्माण प्रेरणा / बनी आज भी / हैं रानी 
   रानी दुर्गावति / हुईं अमर, जन / गण पूजे कह / कल्याणी
   नर्मदासुता, चं/देल-गोंड की / कीर्ति अमर, दे/वी मैया  
   जय-जय गाएंगे / सदियों तक कवि/, पाकर कीर्ति क/था-छैंया        
                                  ********* 
टिप्पणी: २४ जून १५६४ रानी दुर्गावती शहादत दिवस, कूर = समाधि, युद्ध का मूल कारण २२ वर्षीय अकबर द्वारा ४० वर्षीय विधवा रानी को अपने हरम में मिलाने की इच्छ का पालन न होना, दूरदर्शन पर दिखाई जा रही अकबर की छद्म महानता की पोल रानी की संघर्ष कथा खोलती है. 
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदन,मदनावतारी, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विरहणी, विशेषिका, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुद्ध ध्वनि, शुभगति, शोभन, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हेमंत, हंसगति, हंसी)

रविवार, 15 जून 2014

chhand salila: marhatha chhand, sanjiv

छंद सलिला:
मरहठाRoseछंद 

संजीव
*
छंद लक्षण:  जाति महायौगिक, प्रति पद २९  मात्रा, यति १०-८-११, पदांत गुरु लघु । 

लक्षण छंद:

    मरहठा छंद रच, असत न- कह सच, पिंगल की है आन  
    दस-आठ-सुग्यारह, यति-गति रख बह, काव्य सलिल रस-खान  
    गुरु-लघु रख आखर, हर पद आखिर, पा शारद-वरदान 
    लें नमन नाग प्रभु, सदय रहें विभु, छंद बने गुणवान  

उदाहरण:

१. ले बिदा निशा से, संग उषा के, दिनकर करता रास   
    वसुधा पर डोरे, डाले अनथक, धरा न डाले घास 
    थक भरी दुपहरी, श्रांत-क्लांत सं/ध्या को चाहे फाँस 
    कर सके रास- खुल, गई पोल जा, छिपा निशा के पास 
     
२. कलकलकल बहती, सुख-दुःख सहती, नेह नर्मदा मौन    
    चंचल जल लहरें, तनिक न ठहरें, क्यों बतलाये कौन?
    माया की भँवरें, मोह चक्र में, घुमा रहीं दिन-रात 
    संयम का शतदल, महके अविचल, खिले मिले जब प्रात   

३. चल उठा तिरंगा, नभ पर फहरा, दहले दुश्मन शांत 
    दें कुचल शत्रु को, हो हमलावर यदि, होकर वह भ्रांत 
    आतंक न जीते, स्नेह न रीते, रहो मित्र के साथ 
    सुख-दुःख के साथी, कदम मिला चल, रहें उठायें माथ 
__________
*********  
(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अनुगीत, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामरूप, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, धारा, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मरहठा, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विद्या, विधाता, विरहणी, विशेषिका, विष्णुपद, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शुद्धगा, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हरिगीतिका, हेमंत, हंसगति, हंसी)

chhand salila: dhara chhand -sanjiv

छंद सलिला:
धाराRoseछंद 

संजीव
*
छंद लक्षण:  जाति महायौगिक, प्रति पद २९  मात्रा, यति १५ - १४, विषम चरणांत गुरु लघु सम चरणांत गुरु। 

लक्षण छंद:

    दे आनंद, न जिसका अंत , छंदों की अमृत धारा 
    रचें-पढ़ें, सुन-गुन सानंद , सुख पाया जब उच्चारा 
    पंद्रह-चौदह कला रखें, रेवा-धारा सदृश बहे
    गुरु-लघु विषम चरण अंत, गुरु सम चरण सुअंत रहे  

उदाहरण:

१. पूज्य पिता को करूँ प्रणाम , भाग्य जगा आशीष मिला           
    तुम बिन सूने सुबहो-शाम , 'सलिल' न मन का कमल खिला        
    रहा शीश पर जब तक हाथ , ईश-कृपा ने सतत छुआ 
    छाँह गयी जब छूटा साथ , तत्क्षण ही कंगाल हुआ
     
२. सघन तिमिर हो शीघ्र निशांत , प्राची पर लालिमा खिले   
    सूरज लेकर आये उजास , श्वास-श्वास को आस मिले            
    हो प्रयास के अधरों हास , तन के लगे सुवास गले  
    पल में मिट जाए संत्रास , मन राधा को रास मिले  

३. सतत प्रवाहित हो रस-धार, दस दिश प्यार अपार रहे              
    आओ! कर सोलह सिंगार , तुम पर जान निसार रहे 
    मिली जीत दिल हमको हार ,  हार ह्रदय तुम जीत गये 
    बाँटो तो बढ़ता है प्यार , जोड़-जोड़ हम रीत गये  
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(अब तक प्रस्तुत छंद: अखण्ड, अग्र, अचल, अचल धृति, अनुगीत, अरुण, अवतार, अहीर, आर्द्रा, आल्हा, इंद्रवज्रा, उड़ियाना, उपमान, उपेन्द्रवज्रा, उल्लाला, एकावली, कुकुभ, कज्जल, कामरूप, कामिनीमोहन, काव्य, कीर्ति, कुण्डल, कुडंली, गीता, गीतिका, गंग, घनाक्षरी, चौबोला, चंडिका, चंद्रायण, छवि, जग, जाया, तांडव, तोमर, त्रिलोकी, दिक्पाल, दीप, दीपकी, दोधक, दृढ़पद, धारा, नित, निधि, निश्चल, प्लवंगम्, प्रतिभा, प्रदोष, प्रभाती, प्रेमा, बाला, भव, भानु, मंजुतिलका, मदनअवतार, मदनाग, मधुभार, मधुमालती, मनहरण घनाक्षरी, मनमोहन, मनोरम, मानव, माली, माया, माला, मोहन, मृदुगति, योग, ऋद्धि, रसामृत, रसाल, राजीव, राधिका, रामा, रूपमाला, रोला, लीला, वस्तुवदनक, वाणी, विद्या, विधाता, विरहणी, विशेषिका, विष्णुपद, शक्तिपूजा, शशिवदना, शाला, शास्त्र, शिव, शुभगति, शोभन, शुद्धगा, शंकर, सरस, सार, सारस, सिद्धि, सिंहिका, सुखदा, सुगति, सुजान, सुमित्र, संपदा, हरि, हरिगीतिका, हेमंत, हंसगति, हंसी)